Vinayaka Chaturthi Katha विनायक चतुर्थी की व्रत कथा

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Welcome to My Latest Vinayaka Chaturthi Katha article. अगर आपने विनायक चतुर्थी का व्रत रखा है और आपको Vinayaka Chaturthi Katha की जानकारी प्राप्त करनी है तो मेरा आज का यह आर्टिकल इसी टोपिक से जुड़ा है जिसके माध्यम से आपको Vinayaka Chaturthi Katha की पूरी जानकारी प्राप्त होगी.

Vinayaka Chaturthi Katha
Vinayaka Chaturthi Katha

Vinayaka Chaturthi Katha विनायक चतुर्थी की व्रत कथा

विनायक चतुर्थी इस साल 06 जनवरी, 2022 गुरूवार के दिन पड़ रही है. हमारे हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती है और हर चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की तिथि है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।

इसी के साथ विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी का उपवास करते हैं भगवान गणेश उसे ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण है जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।

विनायक चतुर्थी का व्रत किस तरह किया जाता है. विनायक चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहर्त क्या है और विनायक चतुर्थी के दिन आपको क्या काम करना चाहिए और क्या काम नहीं करना चाहिए. इस से जुडी पूरी जानकारी आपको यहाँ क्लिक करके मेरी पिछली पोस्ट में मिल जाएगी.

चलिए अब में आप सभी भक्तो को Vinayaka Chaturthi Katha की पूरी जानकारी देता हु. ताकि आप सभी को Vinayaka Chaturthi Katha को पढ़कर Vinayaka Chaturthi के बारे में पता चल सके.

Vinayaka Chaturthi की Katha इस प्रकार है. एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करते हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया।

पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम गणेश रखा। माता पार्वती ने बालक गणेश को स्नान करने के समय मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने कहा कि जब तक में स्नान करके न आ जाऊं किसी को भी अंदर नहीं आने देना।

भोगवती में स्नानकर जब शिवजी अंदर आने लगे तो बाल स्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सर धड़ से अलग कर वो घर के अंदर चले गए। शिवजी जब घर के अंदर गए तो वह बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वो नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया।

दो थालियां लगी देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब माता पार्वती ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया। इतना सुनकर माता पार्वती दु:खी हो गई और विलाप करने लगी।

उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई। कहा जाता है कि जिस तरह शिवजी ने श्री गणेश को नया जीवन दिया था, उसी तरह भगवान गणेश भी नया जीवन अर्थात आरम्भ के देवता माने जाते हैं।

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