Welcome to My Latest Putrada Ekadashi Vrat Katha Article. अगर आपने Pausha Putrada Ekadashi Vrat रखा है. और आप Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha के बारे में जानना चाहते है तो मेरा आज का यह आर्टिकल इसी टोपिक से जुड़ा है. अपने आज के इस आर्टिकल के द्वारा आप सभी को Pausha Putrada Ekadashi Vrat कथा की पूरी जानकारी प्राप्त होगी.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha
Pausha Putrada Ekadashi Vrat इस साल 13 जनवरी, 2022 गुरूवार के दिन पड़ रहा है. इस व्रत से जुडी पूरी जानकारी आपको यहाँ क्लिक करके मिल जाएगी. जिसमे मैंने इसकी पूजा vidhi को विस्तार से बताया है. पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनने मात्र से संतान सुख की प्राप्ति होती और भगवान श्री कृष्ण आपके बच्चों की हमेशा रक्षा करते हैं।
तो आइए सुनते है पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा। Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha
Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha
एक बार की बात है, भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। जिसकी पत्नी का नाम शैव्या था। उसके कोई संतान नहीं थी। वह नि:संतान होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बन्धु, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था।
राजा सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझे कौन पिंडदान करेगा। बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
जिस मनुष्य ने अपनी संतान का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है।
वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।
राजा को देखकर मुनियों ने कहा – हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, हमें बताए।
राजा ने पूछा – महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए।
मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए।
मुनि बोले – हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।
तो भक्तो जैसे राजा को व्रत रखने से आशीर्वाद रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, वैसे ही आपके जीवन में भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद बना रहे। तो ये है सम्पूर्ण Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha.