Welcome to My Latest Sankashti Chaturthi Vrat Katha Article. अगर आपने Sankashti Chaturthi Vrat रखा है और आप Sankashti Chaturthi Vrat Katha के बारे में पता करना चाहते है. तो मेरा आज का यह आर्टिकल Sankashti Chaturthi Vrat कथा से जुड़ा है जिसके माध्यम से आपको संकष्टी चतुर्थी कथा की पूरी जानकारी प्राप्त होगी.
संकष्टी चतुर्थी भगवान श्री गणेश को समर्पित होती है। जिसका मतलब होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’। महीने में दो चतुर्थी आती है, लेकिन पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को अर्थात कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इसके अलावा इसे द्विजप्रिय संकष्टी के नाम से भी जाना जाता है।
Sankashti Chaturthi Vrat Katha हिंदी में
भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों में संकष्टी चतुर्थी का व्रत बड़े ही धूम धाम से किया जाता है। गणेश जी को प्रथम पूज्य माना गया है और हर शुभ कार्य से पहले उन्हें ही पूजा जाता है। इसीलिए इस दिन व्रत रखने वालों के गणेशजी हर दुख दर्द हर लेते हैं।
इस दिन महिलाएं पूरे विधि-विधान से भगवान गणेशजी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु और खुशहाली के लिए भगवान गणेश का पूजन करती हैं और उपवास रखती हैं। संकष्टी चतुर्थी पूजा से जुडी पूरी जानकारी आपको यहाँ क्लिक करके मिल जाएगी. तो चलिए अब Sankashti Chaturthi Vrat Katha की जानकारी प्राप्त करते है
Sankashti Chaturthi Vrat Katha – संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
एक बार की बात है माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे, तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए। इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी।
मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात देकर विजयी हो रही थीं। खेल चलते रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया।
बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगी और उसे माफ़ कर देने को कहा। बालक के बार-बार निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वह एक उपाय बता सकती हैं जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा। तभी माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करना, जहां पर कुछ कन्याएं आती हो और तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना।
बालक ने व्रत की विधि को जानकर पूरी श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसे किया। उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी। तभी बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया। गणेश ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले।
माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गई होती हैं। जब शिवजी ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर वापस कैलाश लौट आती हैं।
तो मित्रों ये थी संकष्टी चतुर्थी के व्रत की पूजा विधि और व्रत कथा, हमें आशा है कि आपको ये आर्टिकल जरुर पसंद आया होगा। मिलते है एक नए कथा के साथ तब तक के लिए नमस्कार।