Welcome to My Latest Devuthani Ekadashi Vrat Katha or Pooja Vidhi Article. इस साल देवउठनी एकादशी 14 नवम्बर को सूर्योदय के समय से प्रारंभ हो जाएगी और अगले दिन सूर्योदय तक रहेगी. इस दिन से शुभ कार्य शुरू हो जाते है. पुराणिक कथाओ के अनुसार इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह होता है.
हिंदी पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 Ekadashi पड़ती है. एक महीने में 2 एकादशी पड़ती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जिस मनोरथ का फल त्रिलोक में कहीं न मिल सके, वह देवोत्थानी एकादशी व्रत से प्राप्त किया जा सकता है। इस पर्व का महत्व इसलिए ज्यादा है, क्योंकि भगवान विष्णु आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी को विश्राम के लिए क्षीर सागर में चले जाते हैं। चार महीने विश्राम के बाद इस कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही भगवान जागते हैं। इसके साथ ही सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
Devuthani Ekadashi Vrat Katha
पुराणिक मान्यताओ के अनुसार एक राजा थे उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी, एकादशी के दिन कोई भी अन्नं नहीं बेचता था सभी फलाहार करते थे. एक बार भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेनी चाही. भगवान एक सुन्दरी का रूप धारण करने के बाद सडक पर बेठ गये. तभी रजा उसी सडक से निकले और उन्होंने सुन्दरी को बेठे देखा और उस से पूछा हे- सुन्दरी कोन हो तुम और यहाँ क्यों बेठी हो.
राजे के द्वारा पूछने पर सुन्दरी ने बोला में बड़ी अभागी हु, इस नगर में मेरा कोई जान पहचान का नहीं है किस से सहयता मंगू. रजा उस स्त्री की सुन्दरता पर मोहित हो गया. और रजा उस स्त्री से बोला तुम मेरे महल आकर मेरी रानी बनकर रहो. सुन्दरी ने रजा की बात सुनी और बोली मुझे आपकी बात मंजूर है. लेकिन मेरी एक शर्त है आपको राज्य का पूरा अधिकार मुझे सोपना होगा. राज्य पर पूर्ण अधिकार मेरा होगा, और मैं जो भी बनाउंगी वो आपको खाना होगा.
रजा को वो स्त्री बहुत पसंद थी और वो उसके रूप पर मोहित था तो उसने उस सती की सभी शर्त को मान लिया. अगले दिन एकादशी थी तो रानी ने हुक्म दिया कि अन्य दिनों की तरह बाजार मे अन्न को बेचा जाये. इसके बाद रानी ने मॉस मछली आदि पकवान बना कर राजा को परोसा और उसे खाना को कहा. यह देखकर राजा न कहा रानी आज एकदशी है में केवल आज फलाहार ही खाऊंगा.
राजा के ऐसा बोलने पर रानी ने अपनी शर्त याद दिलवाई और बोली यह तो आपको खाना ही पड़ेगा वर्ना में बड़े राजकुमार का सर काट दूंगी. राजा ने अपनी स्तिथि के बारे में बड़ी महारानी को बताया. बड़ी महारानी ने बोला आप अपना धर्म ना छोड़े बड़े राजकुमार का सिर दे दीजिये. पुत्र तो आपको फिर से मिल जायेगा. लेकिन आपका धर्म चला गया तो वो आपको दुबारा नहीं मिलेगा.
इसी दोरान राजुकमार बाहर से खेलकर महल में वापिस आया और उनसे अपने माता पिता की आखो में आंसू देखे और इसका कारण पूछा तब राजा ने राजुकमार को पूरी बात विस्तार से बताई. इसके बाद राजकुमार ने बोला मैं अपना सर देने को तेयार हु. ऐसे करने से मेरे पिता के धर्म की रक्षा भी हो जाएगी.
राजा दुखी मन से रानी के पास गये और बोले तुम बड़े राजकुमार की सिर ले सकती हो. लेकिन मैं अपना धर्म नहीं छोडूंगा. राजा के मुह से ऐसा सुनते ही वो स्त्री अपने असली रूप में भगवान विष्णु के रूप में आ गयी. भगवान विष्णु बोले राजा मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था. तुम मेरी परीक्षा में पास हुवे बोलो तुम्हे क्या वर चाहिए. राजा ने बोला आपका दिया हुवा सब मेरे पास है. आप अपनी दया द्र्स्टी हमारे ऊपर बनाये रखिये.
Devuthani Ekadashi Pooja Vidhi
धर्मग्रंथों के अनुसार, देवोत्थानी एकादशी पर तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। तुलसी के पौधे का महत्व पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्त, स्कंद और भविष्य पुराण के साथ गरुड़ पुराण में भी बताया गया है। तुलसी का धार्मिक महत्व होने के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। यह पौधा शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के साथ बैक्टीरिया और वायरल इंफेक्शन से भी लड़ता है।
इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से संतानहीन लोगों को संतान की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। संतान की कामना रखने वालों को इस दिन संतान गोपाल मंत्र का जाप और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से व्रत किया जाए तो सभी भौतिक सुख तो मिलते ही हैं, साथ में प्राणी विष्णु लोक यानी बैकुंठ का वासी भी हो जाता है।
विशेष वस्तुओं का अर्पण : भगवान विष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें। इस दिन गंगा में स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र का जाप करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। धन वृद्धि के लिए इस दिन सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं, भोग में तुलसी के पत्ते जरूर डालें।
पूजन विधि और शुभ मुहूर्त
देवोत्थानी एकादशी तिथि- 14 नवंबर, 2021, एकादशी तिथि प्रारंभ – 14 नवंबर, सुबह 05:48 बजे एकादशी तिथि समापन – 15 नवंबर, सुबह 06:39 बजे
इस दिन स्नान आदि से निपटकर धुप दीप दिखाकर और शंखघंटा बजाकर भगवान को जगाएं। इसके बाद दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर भगवान को स्नान कराएं। पंचामृत आदि से स्नान कराकर वस्त्र, जनेऊ, रोली, चंदन, चावल, फूलमाला और इत्र आदि से भगवान को अलंकृत करें। इसके बाद भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा और शकरकंद अर्पित करें। अगर सामर्थ्य हो तो भगवान को छप्पन प्रकार के भोग अर्पण करें।
भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए पीले रंग के कपड़े, पीला फल, पीला अनाज अर्पण करें और फिर गरीबों और जरूरतमंद को दान करें। एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक लगाएं और ‘ऊं वासुदेवाय नमः‘ मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें। इस उपाय से घर में सुखशांति बनी रहती है और किसी भी प्रकार का कोई संकट नहीं आता। किसी पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और शाम को दीपक जलाएं।